निबंध रचना

  • नवीनतम पाठ्यक्रम के अन्तर्गत पाँच विषय पर निबन्ध पूछे जाते हैं, जिनमें से एक किसी एक विषय पर निबन्ध लिखना होता है। इसके लिए 6 अंक निर्धारित हैं।

मनुष्य अपने विचारों एवं भावों को अभिव्यक्त करने के लिए भाषा के मौखिक एवं लिखित रूप का सहारा लेता है। किसी भी व्यक्ति के लेखन कौशल के मूल्यांकन के लिए सामान्यतया सबसे अच्छी एवं ठोस कसौटी निबन्ध होती है। इसके माध्यम से व्यक्ति के ज्ञान, अनुभव, सोच एवं भावना को परखा जा सकता है।

फ्रांसीसी शब्द एसाई से निर्मित, अंग्रेजी के शब्द ‘एस्से’ (Essay) को हिन्दी में ‘निबन्ध’ कहा जाता है, जिसका अर्थ है- ‘प्रयत्न’ या किसी विषय पर गद्य में लिखी गई छोटी साहित्यिक रचना। वास्तव में निबन्ध का शाब्दिक अर्थ होता है- अच्छी तरह बँधा अर्थात् कसा हुआ, लेकिन अनेक विद्वानों ने निबन्ध (निबन्ध) को बन्धन मुक्त लेखन के रूप में भी व्याख्यायित किया है। सही अर्थों में निबन्ध में भाषा की कसावट होती है, जबकि विचारों एवं भावों में उन्मुक्तता होती है।

वस्तुतः निबन्ध एक साहित्यिक रचना है, जो किसी भी विषय पर हो सकती है और जो साधारणतः लघु तथा गद्य में होती है। हिन्दी के प्रसिद्ध लेखक डॉ. श्यामसुन्दर दास की निबन्ध विषयक परिभाषा है- “निबन्ध वह लेख होता है, जिसमें किसी गहन विषय पर विस्तृत और पाण्डित्यपूर्ण विचार किया जाता है।”

आचार्य रामचन्द्र शुक्ल ने निबन्ध को ‘गद्य की कसौटी’ बताया है।

निबन्ध लेखन एक कौशल है। एक श्रेष्ठ निबन्ध के निम्नलिखित अंग होते है

भूमिका निबन्ध का महत्त्वपूर्ण अंग है। इसे ‘विषय प्रवेश’ अथवा ‘प्रस्तावना’ भी कहा जाता है। भूमिका या प्रस्तावना के अन्तर्गत विषय का परिचय दिया जाता है। विषय का परिचय अथवा भूमिका जितनी आकर्षक एवं रोचक होगी, पाठकों को निबन्ध के विषय में जानने की उतनी ही उत्सुकता होगी। ध्यान रहे कि भूमिका बहुत बड़ी नहीं होनी चाहिए।

विषय-परिचय के पश्चात् विषय का विस्तार किया जाता है। यह अंश निबन्ध का ‘मध्य भाग’ कहलाता है। इसमें विषय से सम्बन्धित जो भी सामग्री होती है, उसे क्रमबद्ध रूप से अलग-अलग अनुच्छेदों में विभाजित करके प्रस्तुत किया जाता है। ध्यान रहे कि प्रत्येक अनुच्छेद एक-दूसरे से अच्छी तरह जुड़ा होना चाहिए।

निबन्ध का अन्तिम भाग ‘उपसंहार’, ‘निष्कर्ष’ अथवा ‘समापन’ कहलाता है। इस भाग के अन्तर्गत निबन्ध में कही गई बातों को सारांश के रूप में प्रकट किया जाता है। निबन्ध का अन्त ऐसा होना चाहिए कि उसका स्थायी प्रभाव पाठक पर पड़ सके।

विषय और उद्देश्य की दृष्टि से निबन्ध के प्रकार

निबन्ध-विषयों के क्षेत्र अत्यन्त व्यापक हैं। मानव समाज, इतिहास, भूगोल, जीव-जन्तु, पशु-पक्षी, भवन, गाँव, यात्रा, आत्मकथा तथा मानव प्रवृत्तियाँ आदि किसी भी विषय पर निबन्ध लिखा जा सकता है। विषय और उद्देश्य की दृष्टि से निबन्ध के निम्न प्रकार होते हैं

इस प्रकार के निबन्धों में स्थान, वस्तुओं, नगरों, दृश्यों, ऋतुओं आदि का वर्णन किया जाता है। इन निबन्धों में ‘वर्णन’ की प्रधानता रहती है।

किसी भी घटना, यात्राओं, उत्सवों, संस्मरणों, महापुरुषों की जीवनी आदि का वर्णन विवरणात्मक निबन्ध में किया जाता है; जैसे- मेरे सपनों का भारत, यात्रा-वृत्तान्त, भारत की ऋतुएँ, भारतीय त्योहार – होली, दीपावली, दशहरा आदि।

कुछ विषय ऐसे हैं, जिन पर हम अपने विचार इस प्रकार प्रकट करते हैं कि वे विषय मानव समाज के लिए लाभकारी हैं या हानिकारक ? विचारों की प्रधानता हो जाने के कारण ऐसे निबन्ध विचारात्मक निबन्ध कहलाते हैं; जैसे- नारी की सामाजिक स्थिति, शिक्षा का गिरता स्तर, सार्वजनिक जीवन में हिंसा आदि।

भावात्मक निबन्धों में भाव को प्रधानता दी जाती है। भाव का सम्बन्ध हृदय से है, इसलिए लेखक अपने भावुक मन से मनचाही अभिव्यक्ति प्रस्तुत करने के लिए स्वतन्त्र होता है; जैसे- भारत माता, ग्रामवासिनी, मेरा प्रिय कवि, दया धर्म का मूल है, मित्रता आदि।

इस प्रकार के निबन्धों के अन्तर्गत आने वाले विषयों में कार्य कारण का सम्बन्ध दिखाकर एक घटना के पश्चात् क्रमशः दूसरी, तीसरी घटना का विवरण प्रस्तुत किया जाता है। इसमें क्रम की श्रृंखला कहीं भी टूटने नहीं दी जाती है। इनमें पौराणिक, ऐतिहासिक, धार्मिक आदि विषयों से सम्बन्धित गाथाओं का समावेश रहता है।

निबन्ध को प्रभावी बनाने हेतु सुझाव

उत्तम निबन्ध-लेखन के लिए निम्नलिखित बातों को ध्यान में रखना चाहिए

  1. पहले निबन्ध के शीर्षक को भली-भाँति समझना चाहिए। फिर उससे सम्बन्धित जितने भी विचार मन-मस्तिष्क में उठें उन्हें रूपरेखा के रूप में लिख लेना चाहिए। फिर एक-एक विचार रूपर क्रमशः अनुच्छेद बदलकर लिखना चाहिए। एक ही अनुच्छेद में कई विचारों को नहीं लिखना चाहिए।

    2. निबन्ध में मुख्य विषय से हटकर इधर-उधर की बातें लिखकर अनावश्यक विस्तार नहीं करना चाहिए।

    3. निबन्ध की भाषा सरल, सरस, रोचक व प्रभावशाली होनी चाहिए।

    4. विभिन्न सूक्तियों, लोकोक्तियाँ व मुहावरों के यथास्थान प्रयोग से निबन्ध को अधिक प्रभावी बनाया जा सकता है।

    5. महापुरुषों के कथनों, संस्कृत के श्लोकों व महान् कवियों की उक्तियों को भी निबन्ध में प्रसंगानुसार प्रयोग किया जा सकता है।

    6. निबन्धों में तर्कशीलता, विचारात्मकता के साथ-साथ भावात्मकता भी आवश्यक है, क्योंकि बुद्धि और मन के तालमेल के बिना श्रेष्ठ निबन्ध नहीं लिखे जा सकते। श्रेष्ठ निबन्ध पाठक के हृदय पर गहरा प्रभाव छोड़ते हैं।

    7. विषयानुसार निबन्धों में भी भिन्न शैलियों का प्रयोग किया जाना चाहिए। जैसे साहित्यिक निबन्धों में तत्सम् शब्दों से युक्त परिष्कृत शैली तथा सूक्तिपरक निबन्धों में दृष्टान्तों, घटनाओं व उदाहरणों से उसे पुष्ट करना चाहिए।

      8. संवाद शैली में वक्ता के चरित्र सम्बन्धी विशेषताएँ, शैली की संक्षिप्तता व रोचकता तथा भाषगत निबन्धों में बौद्धिकता व तथ्यात्मकता को महत्त्व देना चाहिए।

        इस प्रकार उपरोक्त बातों को ध्यान में रखते हुए विषयानुकूल भाषा-शैली का प्रयोग, चिन्तन और भावुकता के सम्बन्ध में मन पर स्थायी प्रभाव डालने वाले व रोचक निबन्ध लिखे जा सकते हैं।

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