पर्व ‘दीपावली ‘ ( अथवा ) मेरा प्रिय पर्व त्यौहार
रूपरेखा –
1. प्रस्तावना , 2. मनाने का समय 3. मनाने के कारण 4. मनाने का ढंग, 5. लाभ 6 दुष्पवृत्तियों, 7. उपसंहार।
प्रस्तावना – भारतवर्ष में अनेक त्यौहार मनाये जाते हैं। इनमें से कुछ धार्मिक हैं, कुछ सांस्कृतिक, कुछ सामाजिक और कुछ राष्ट्रीय त्यौहार हैं। इनमें से दीपावली एक बहुत बड़ा धार्मिक, सांस्कृतिक एवं सामाजिक पर्व है। दीपावली शब्द का अर्थ होता है-दीपकों की पंक्ति। दीपकों की पंक्ति जलाकर वह त्यौहार मनाया जाता है। इसीलिए इसका नाम दीपावली है। इसी को ‘दीपमालिका’ अथवा ‘दीवाली’ भी कहा जाता है।
मनाने का समय – शरद ऋतु के सुहावने समय में यह महान पर्व प्रति वर्ष कार्तिक मास की अमावस्या को मनाया जाता है। सभी के मन में एक विशेष उल्लास रहता है।
मनाने के कारण – दीपावली के मनाये जाने के मुख्य कारण निम्नलिखित है-
1. मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान रामचन्द्र दुष्ट रावण का वध करके कार्तिक महीने की अमावस्या को लक्ष्मण और सीता के साथ अयोध्या लौटे थे। उनके आगमन की खुशी में उनके स्वागतार्थ दीपकों की सजावट की गयी। तभी से यह पर्व इस रूप में प्रति वर्ष मनाया जा रहा है।
2. जैन धर्म के प्रचारक भगवान महावीर ने आज ही के दिन सांसारिक बन्धनों का त्याग करके मुक्ति प्राप्त की थी। उसी समय जनता ने दीपमालाएँ जलाकर उनके निर्वाण पद पाने की खुशी मनायी थी।
3. पौराणिक कथाओं के अनुसार इसी दिन लक्ष्मी का अवतार हुआ था; अतः इस दिन विशेष रूप से लक्ष्मी जी का पूजन किया जाता है।
4. आर्य समाज के प्रवर्तक स्वामी दयानन्द सरस्वती ने इसी पुण्य दिवस को मोक्ष प्राप्त किया था। अतः आर्यसमाजी उनकी याद में उत्साह से इस पर्व को मनाते हैं।
5. सिक्खों के छठे गुरु हरगोविन्द सिंह ने इसी दिन कारावास से मुक्ति प्राप्त की थी।
इस प्रकार अनेक कड़ियाँ इस पर्व से जुड़ती जा रही है जिससे इस पर्व का महत्त्व और बढ़ता ही जा रहा है।
मनाने का ढंग – मुख्य पर्व आने से दस-पन्द्रह दिन पहले से ही इसकी तैयारियाँ प्रारम्भ होने लगती है। सफेदी, रोगन आदि के द्वारा घरों को स्वच्छ कर दिया जाता है। कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी को छोटी दीवाली मनायी जाती है, इसे नरक- चतुर्दशी भी कहते हैं। इसी दिन भगवान कृष्ण ने अत्याचारी नरकासुर का वध किया था। छोटी दीवाली से पहले दिन धन्वन्तरि त्रयोदशी मनायी जाती है। इस त्यौहार को वैद्य लोग अधिक उत्साह से मनाते हैं। आयुर्वेद के प्रवर्तक भगवान धन्वन्तरि का अवतार इसी दिन हुआ था। अमावस्या को दीवाली का मुख्य पर्व होता है। फोटो, कैलेण्डर, झाड़-फानूस आदि से घर सजाये जाते है। हलवाइयों की दुकानें रंग-बिरंगी मिठाइयों से सजायी जाती है। बाजारों में स्थान-स्थान पर सील, बताशों, मिट्टी के खिलौनों, मोमबत्तियो और पटाखों के ढेर लगे हुए होते हैं।
सन्ध्या आते ही दीपको, मोमबत्तियों तथा बिजली के बल्बों से सारा शहर जगमगा उठता है। गणेश तथा लक्ष्मी जी का पूजन प्रारम्भ हो जाता है। सम्बन्धियों और मित्रों के यहाँ मिठाइयाँ भेजी जाती हैं। घरों में पूड़ी-पकवान तथा अनेक प्रकार के स्वादिष्ट व्यंजन बनाये जाते हैं।
लाभ – इस पर्व को मनाने से कई लाभ होते हैं। वर्षा ऋतु में रोग के कीटाणु उत्पन्न हो जाते हैं। मकानों की सफाई, होने तथा सरसों के तेल धुएँ से रोग के कीटाणु नष्ट हो जाते हैं। इस त्यौहार से दुकानदारों को विशेष लाभ होता है। बच्चों का सूब मनोरंजन होता है।
दुष्प्रवृत्तियाँ – इस पवित्र पर्व में कुछ दुष्प्रवृत्तियाँ भी आ गयी है। इस दिन कुछ लोग जुआ खेलते हैं, ऐसे लोगों के लिए दीवाली पर्व न होकर दीवाला बन जाती है। कुछ लोग शराब पीकर इस पर्व को गन्दा करते हैं।
उपसंहार – सारे भारत में यह त्यौहार बड़ी धूमधाम से मनाया जाता है। दीवाली से अगले दिन गोवर्धन पूजा और उससे भी अगले दिन भैया दूज को भाई-बहिन का मिलन त्यौहार होता है। इस प्रकार चार-पाँच दिन तक हर्ष एवं उल्लास का वातावरण बना रहता है। वास्तव में यह त्यौहार हमारी प्राचीन सभ्यता और संस्कृति का प्रतीक है।